समय से यूं हूँ परे
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गुरुवार, 29 नवंबर 2012
चांदनी रात
गुनगुनाते फूल परियों सी थिरकती पत्तियां
हवा कुछ ऐसी बही महकी ह्रदय की बस्तियां
चांदनी नहला गयी, किरणे गयी दे थपकियाँ,
प्रकृति के संगीत से उमड़ी अनोखी लोरियां
तारिकाओं
ने
कही अनसुनी कहानियाँ
रात
बोली दे रही मैं श्वास को रवानियाँ !
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