आत्मा का मुक्त पंछी, फिर किलोरें भर रहा है
काट कर हर पाश को, फिर उड़ रहा है
जाल माया के बिछाये प्रेमियों ने और
नोचे पंख कोमल भावना के .
छटपटा आहत सा, पंछी रो रहा था
वेदना की वादियों में खो रहा था .
पर सुरीली तान ने उसको छुआ यों
भूल उर की वेदना फिर जी उठा वह
व्योम से उतरे नए सन्देश लेकर
नाचते गाते सुरों में राग भर कर
पांख फैलाए थिरकते मोरनी व मोर
ले उड़े संग आसमान की ओर
जग है एक सपना... भुलादो मीत मेरे
उड़ चलो ..........................उड़ते चलो ..............संग मीत मेरे!..
19-3-08
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