ज़िन्दगी हूँ मैं कभी न हार सकती
बीज थी,उड़ कर हवा के संग मट्टी में मिली
बह गयी जल संग,गहरे अंध घन में,
ली फिर अंगड़ाई खोज रास्ता नव
तोड़ दी चट्टान सूरज से मिलन को
दी हवा ने शह और मैं मुस्कुरायी
पौध बन के फूल फिर से खिलाऊंगी
बीज थी,उड़ कर हवा के संग मट्टी में मिली
बह गयी जल संग,गहरे अंध घन में,
ली फिर अंगड़ाई खोज रास्ता नव
तोड़ दी चट्टान सूरज से मिलन को
दी हवा ने शह और मैं मुस्कुरायी
पौध बन के फूल फिर से खिलाऊंगी
adha akash hamara
जवाब देंहटाएंसम्पूर्ण नारी कुछ भी खिला सकती है��
हटाएंमौन में भी संवाद सा है ,हर तरफ है मदहोशी हर तरफ उन्माद से ह।
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