विश्व नीयन्ते
विश्व नीयन्ते ! खीज उठा है आज विकल मेरा मन -प्राण ,
तुम कैसे मायावी हो , की खेला करते खेल महान !
अपनी ही माया का जालक ; अपना ही सारा संधान ,
अपने ही रंगों की रचना; स्व-निर्मित गुणों का गान!
मुझ से ना छिप पाया अच्युत तेरा मधुर -विराट स्वरूप ,
कितनी ही बातों में तुमने, दिख लाये है रूप -अरूप !
कितने रूपों में आ आकर तुम मुझ को छल जाते हो ,
पहले मोहो, फिर पास -आकर दूर बहुत हो जाते हो !
दे जाते हो फिर से मुझ को , धाराएं नव चिंतन की.
कुछ में आंसू ,कुछ में पीड़ा ,कुछ में रेखाएं दुःख की !
दिया हुआ दुःख तेरा है यह सोच सम्हल मैं जाती हूँ .
सुख से अधिक मान कर दुःख को निकट तेरे आ जाती हूँ !
1982
विश्व नीयन्ते ! खीज उठा है आज विकल मेरा मन -प्राण ,
तुम कैसे मायावी हो , की खेला करते खेल महान !
अपनी ही माया का जालक ; अपना ही सारा संधान ,
अपने ही रंगों की रचना; स्व-निर्मित गुणों का गान!
मुझ से ना छिप पाया अच्युत तेरा मधुर -विराट स्वरूप ,
कितनी ही बातों में तुमने, दिख लाये है रूप -अरूप !
कितने रूपों में आ आकर तुम मुझ को छल जाते हो ,
पहले मोहो, फिर पास -आकर दूर बहुत हो जाते हो !
दे जाते हो फिर से मुझ को , धाराएं नव चिंतन की.
कुछ में आंसू ,कुछ में पीड़ा ,कुछ में रेखाएं दुःख की !
दिया हुआ दुःख तेरा है यह सोच सम्हल मैं जाती हूँ .
सुख से अधिक मान कर दुःख को निकट तेरे आ जाती हूँ !
1982
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