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गुरुवार, 8 अगस्त 2013

चिता की आग


मैं चिता की आग मैं जलती रही हूँ
                                                                 जन्म लेकर भी सतत मरती रही हूँ
क्या मुझे तुम अर्घ्य दोगे ?
मेरे उर में वेदना का सिन्धु पागल
छाये रहते मन -गगन में घोर बादल ,
मुक्ति की पहली किरण की भोर दोगे ?
तोड़ कर चट्टान झरने सी बही हूँ
उमड़ती घुमड़ती प्यासी सी नदी हूँ
क्या मुझे तुम भावना का सिन्धु दोगे ?

5-5-09

1 टिप्पणी:

  1. नदी को जीवन मनुज लूट रहा है
    इसे लिए तो बादल का धैर्य टूट रहा है
    उत्तराखंड उदास हो रहा है
    क्यूँकी नदियों का उपहास होता है

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