मैं चिता की आग मैं जलती रही हूँ
जन्म लेकर भी सतत मरती रही हूँ
क्या मुझे तुम अर्घ्य दोगे ?
मेरे उर में वेदना का सिन्धु पागल
छाये रहते मन -गगन में घोर बादल ,
मुक्ति की पहली किरण की भोर दोगे ?
तोड़ कर चट्टान झरने सी बही हूँ
उमड़ती घुमड़ती प्यासी सी नदी हूँ
क्या मुझे तुम भावना का सिन्धु दोगे ?
5-5-09
नदी को जीवन मनुज लूट रहा है
जवाब देंहटाएंइसे लिए तो बादल का धैर्य टूट रहा है
उत्तराखंड उदास हो रहा है
क्यूँकी नदियों का उपहास होता है