छू न पायेंगे ह्रदय की घाटियों को ग्रीष्म के उजले फुएं से मेह.
ओ हवाओं इन फुओं को ले उड़ाओ झलकने दो शांत नभ का नेह .
बादलों का प्रेम निष्ठुर, बींध देता देह कभी रिमझिम, कभी गर्जन-क्रूर भर हुंकार आँधियों सा उमड़ता तो कभी चक्रावात ,कभी ओलों सा बरसकर, बन गया एक भार .
घाटियों की भूमि नाम है मत करो अघात गुनगुनाती धूप से दो भूमि को श्रृंगार ,उलसने दो बीज फूलों के बनो वातास ,प्रेम में स्पर्श दैहिक खोजो न साभार ,
मुक्त फूलों की महक है मुक्त रश्मि-विलास मुक्त है उर मुक्त है स्वर मुक्त मधुकण हास मुक्ति सबकी कामना है मुक्ति में हैं राम !
२७-२-09
ओ हवाओं इन फुओं को ले उड़ाओ झलकने दो शांत नभ का नेह .
बादलों का प्रेम निष्ठुर, बींध देता देह कभी रिमझिम, कभी गर्जन-क्रूर भर हुंकार आँधियों सा उमड़ता तो कभी चक्रावात ,कभी ओलों सा बरसकर, बन गया एक भार .
घाटियों की भूमि नाम है मत करो अघात गुनगुनाती धूप से दो भूमि को श्रृंगार ,उलसने दो बीज फूलों के बनो वातास ,प्रेम में स्पर्श दैहिक खोजो न साभार ,
मुक्त फूलों की महक है मुक्त रश्मि-विलास मुक्त है उर मुक्त है स्वर मुक्त मधुकण हास मुक्ति सबकी कामना है मुक्ति में हैं राम !
२७-२-09
bahut sundar
जवाब देंहटाएंआभार शास्त्रीजी लगता है आप ह्रदय की घाटी में बहुतों को पहुंचा देंगे ..पुनः आभार ह्रदय से
जवाब देंहटाएंह्रदय से लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंSundar rachna.
जवाब देंहटाएंDhanyavad sister Manjula Saxena ji
अनुभूति अव्यक्त है अभिव्यक्ति है सेतु
जवाब देंहटाएंह्रदय से हृदय मिलें कविता हैं इस हेतु