क्षितिज पर छाये घटा,
मन प्राण क्यूँ होते विव्हल ?
किसने दिए अवसाद..
दृगहो रहे क्य्युं यूं सजल ?
आते कहाँ से मेघ घिर ?
क्यूँ ढांप लेते चेतना?
मन प्राण परवश रोरहे
इतनी बढ़ी क्यूँ वेदना ?
भावना के भंवर में,
आ बुद्धि की नौका फंसी,
जब छटें आवेश ,
सृष्टि मात्र ईश्वर की हंसी
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