श्री राधे
मूक हूँ अभिभूत हूँ !
युग युगांतर की तृषा से,त्राण पा अवधूत हूँ !
कृष्ण ने चाहा उसे -
जिसने मितायी उस को दी! कृष्ण ने त्यागा उसे -
जिसने विदाई उसको दी !
कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति-
जिसे राधा कहो !
कृष्ण की उन्मादिनी भक्ति-
जिसे राधा कहो !
कृष्ण,कर्षण कर सकी -
रमणी, जिसे राधा कहो !
उस रमणी की चरण रज हूँ !
धूल हूँ !
मूक हूँ ,अभिभूत हूँ !
युग युगांतर की तृषा से त्राण पा अवधूत हूँ !
श्री दिनकर जोशीजी ने राधा -कृष्ण के दिव्य प्रेम मय सम्बन्ध पर एक पुस्तक लिखी है _"श्याम फिर एक बार तुम मिल जाते ' उसे पढ़ने के बाद जो अनुभूति हुई,उसी की अभिव्यक्ति है यह रचना .
मूक हूँ अभिभूत हूँ !
युग युगांतर की तृषा से,त्राण पा अवधूत हूँ !
कृष्ण ने चाहा उसे -
जिसने मितायी उस को दी! कृष्ण ने त्यागा उसे -
जिसने विदाई उसको दी !
कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति-
जिसे राधा कहो !
कृष्ण की उन्मादिनी भक्ति-
जिसे राधा कहो !
कृष्ण,कर्षण कर सकी -
रमणी, जिसे राधा कहो !
उस रमणी की चरण रज हूँ !
धूल हूँ !
मूक हूँ ,अभिभूत हूँ !
युग युगांतर की तृषा से त्राण पा अवधूत हूँ !
श्री दिनकर जोशीजी ने राधा -कृष्ण के दिव्य प्रेम मय सम्बन्ध पर एक पुस्तक लिखी है _"श्याम फिर एक बार तुम मिल जाते ' उसे पढ़ने के बाद जो अनुभूति हुई,उसी की अभिव्यक्ति है यह रचना .
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