यात्रा गंतव्य है और यात्रा ही भावना .. यात्री ऐसे बनो मिट जाए सारी कामना ... क्यूँ भला हो फिर प्रतीक्षा आएगा मिलने कोई ?
जब मिला वह इस तरह मिल कर जुदा होता नहीं ..
खेल
4 October 2013 at 14:22
दिल में ईश्वर सबके ईश्वर में दिल किसी किसी का जब दोनों मिल जाएँ ख़त्म हो जाता खेल सभी का
निश्चल प्रेम
5 September 2013 at 15:01
जो चाहे मर्त्य वस्तु को उसका प्रेम छल भर है जो न मांगे कभी कुछ भी उसी का प्रेम निश्चल है .
सच
23 September 2013 at 16:56
सच अक्सर कड़ुवा होता है दुनिया गोरख धंधा है जिसे खोज हो सच की वह केवल एकाकी बंदा है जो चाहे जग से कुछ भी, है हर दम दयनीय सदा .. अपने अंतर्जग से सुरभित आत्म रमण चयनीय सदा ..
गुरुगीत
5 September 2013 at 14:35
अन्धकार को दें मिटा, दें प्रकाश मय ज्ञान, गुण रूप से परे, सिखलाएँ आत्मा का ध्यान गुरु अगणित हरेक के, बने शिष्य जो कोई माँ, प्रकृति, बंधू, पिता, सखा स्नेहि हो कोई गुरु बिन जीवन जड़ सदा, चेतन ज्ञानी होए आत्मध्यान में रत रहे आत्मामय गुरु होए
परम सुख
4 September 2013 at 11:20
प्रहार जब जब मिलें
तिलमिलाता है अहम्
अहम् हम को नचाता,
चोट खाता है अहम्
अहम् से मुक्त हों,
तत्क्षण परम सुख प्रकट
आत्म सुख अभ्यास से,
टूटती माया विकट
जय श्री राधे!
कृपा है
4 September 2013 at 13:17
कृपा है बनवारी की कविता उनका खेल रचते हैं ब्रहमांड अनंत अपना उनसे मेल
शिष्टाचार ..
27 August 2013 at 17:32
कौन चाहता है मिटे
जग से भ्रष्टाचार
दुःख मिले तब ही कहें
क्यों है भ्रष्टाचार
.सुख मिले तो कहें
यह है शिष्टाचार ..
विवशता
12 August 2013 at 14:40
विवश हर कोई है
जग में अनेको
बन्धनों के हेतु
तरसता हर ह्रदय
हो प्यार, मिले
कोई मधुर सेतु ..........
विद्रोह
12 August 2013 at 14:05
आत्मा विद्रोह जब करती कभी देह लगती धूल दुनिया शव मयि
नशा है ..
23 May 2013 at 11:59
दिशा है न दशा है ..
प्रेम है यह पूर्ण ..
जीने का नशा है ..
अश्रु अपना प्यार ..
8 November 2012 at 08:55
न अछूता तार हैं तू ...न ही अश्रुधार ..
तार मेरा,स्वर तू मेरा अश्रु अपना प्यार ..