समय से यूं हूँ परे
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गुरुवार, 24 अक्टूबर 2013
विवशता
12 August 2013 at 14:40
विवश हर कोई है
जग में
अनेको
बन्धनों के हेतु
तरसता हर ह्रदय
हो प्यार, मिले
कोई मधुर सेतु ..........
1 टिप्पणी:
Manjul Kant
7 दिसंबर 2015 को 7:06 am बजे
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