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शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

शरद पूनम सुहानी

शरद का सुंदर नीलाकाश, निशा निखरी, था निर्मल हास'
बह रही छाया पथ में स्वच्छ, सुधा सरिता लेती उच्छ्वास,
पुलक कर लगी देखने धरा, प्रकृति भी सकी न आँखें मूंद;
सु शीतलकारी शशि आया'! सुधा की मनो बड़ी सी बूँद..❤🕉❤
सुधा की बूंद ने सुध बुध भुला दी...मधुर महारास की स्मृति जगा दी..हृदय मे राग उमडे अनसुने से.. थिरकते रोम पुलकित ..तुहिन कण से..

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22-10-2018) को "किसे अच्छी नहीं लगती" (चर्चा अंक-3132) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. मित्रों शरद पूनम अति उत्साह वश गलत टंकित हो गया.. वेद व्यास जी ने वर्णन ही ऐसा किया है शरद पूनम के महारास का...कौन माधव कौन राधा.. कौन गोपी..भाव साधा...स्वर उमडते राग गाते धिनक धिन धिन धिनक धा..धा..

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