फ़ॉलोअर

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

ह्रदय की घाटी

छू पायेंगे ह्रदय की घाटियों को ग्रीष्म के उजले फुएं से मेह.
हवाओं इन फुओं को ले उड़ाओ  झलकने दो शांत नभ का नेह .
बादलों का प्रेम निष्ठुर, बींध देता देह कभी रिमझिम, कभी गर्जन-क्रूर भर हुंकार आँधियों सा उमड़ता   तो कभी चक्रावात ,कभी ओलों सा बरसकर, बन गया एक भार .
घाटियों की भूमि नाम है मत करो अघात गुनगुनाती धूप से दो भूमि को श्रृंगार ,उलसने दो बीज फूलों के बनो वातास ,प्रेम में स्पर्श दैहिक खोजो साभार ,






मुक्त फूलों की महक है मुक्त रश्मि-विलास मुक्त है उर मुक्त है स्वर मुक्त मधुकण हास मुक्ति सबकी कामना है मुक्ति में हैं राम !
२७--09

5 टिप्‍पणियां:

  1. आभार शास्त्रीजी लगता है आप ह्रदय की घाटी में बहुतों को पहुंचा देंगे ..पुनः आभार ह्रदय से

    जवाब देंहटाएं
  2. अनुभूति अव्यक्त है अभिव्यक्ति है सेतु

    ह्रदय से हृदय मिलें कविता हैं इस हेतु

    जवाब देंहटाएं