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बुधवार, 17 जुलाई 2013

नासमझ



हर बार लगता है कि -
मैं ही गलत थी 
जब मैंने खुद को समझदार 
मान लिया था .
वे जब कहते हैं -
'तुम नासमझ हो !'
आश्चर्य होता है मुझे .
लेकिन यह सच है 
मैंने भी माना है 
कि अब तक सब कुछ 
समझ कर भी 
मैं नासमझ हूँ क्योंकि -
कहाँ सीखा है मैंने ?
झूठे -मूठे वायदे करना,
वक्त पड़े तो टरकाना
पहले आना ,प्यार जताना ,
और फिर डंक चुभो देना .
इतना कुछ बाक़ी है 
अब भी मुझे सीखना ..
फिर भी मालूम है 
मेरी बंदिश है -धोखा खाना 
मेरी आदत है- बदला चाह कर भी 
न ले  पाना ..
हर बार अपने लिए 
इक नया और बेहतर घाव बनाना 
क्योंकि मैं अब भी 
नासमझ हूँ न !
1983

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