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बुधवार, 17 जुलाई 2013

पी लो

चुपचाप पीते चलो 
जो भी मिल जाए 
अपने प्याले में !
कुछ भी ढुलका लो 
चाहे जो भी हो 
कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ता !
अभी तो बस, पीते चलो और 
पीते चलो,प्याला खाली हो 
तो भो होठों के करीब 
खींचे रहो खाली प्याले को !
न हो आज ,कुछ तो मिला 
प्याला भरने को ,
ज़हर ही सही ,
बुरा क्या है ?
प्याला भरा तो है न !
तो फिर चुप क्यों हो ?
लो और पीते चलो 
यूं  ही पीते चलो !
1983

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