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गुरुवार, 25 जुलाई 2013

संघर्ष



सत्य है संघर्ष, है संघर्ष में सुख !
है निराशा तो, निकम्मों की धरोहर
तुम रहो सक्रिय, आशा साथ लेकर ,
तुम नकलची मत बनो ,बन्दर नहीं इन्सान हो न !
साथ लेकर के अकड़ तुम मृत शवों की ,
क्या खड़े रह पाओगे फिर आँधियों में ?
बाढ़ आयी है.. बहे हो साथ उसके ,
रुक नहीं पाते.. नहीं तुम कूल पाते ,
बढ़ रहे अब भी पतन की और ही तुम
काश रुक कर एक पल तुम सोच पाते !
हो कहाँ से ? कौन हो तुम ?
किधर जाते ?प्राण हैं या एक पुतले मात्र हो ?
मुक्त हो तुम या अपरिचित दास हो ?
शक्ति है तुम में छिपी कोई या मात्र नर कंकाल हो ?
'मैं ' -'मेरा ';'तू '-'तुम्हारा 'रटते -रटते
छल -कपट का सींचते जल ,वासनाओं के
वनों में फंस चुके हो... .मुक्ति मिल पायेगी क्या ?
यह कौन जाने ?है कपट में आस्था जब कि तुम्हारी
धोखे बाजी ही है नियति तुम्हारी .
अंत होगा क्या तुम्हारा सोच लो तुम
मुक्ति तो केवल छिपी संघर्ष में है
पर वही संघर्ष जो सच के लिए हो
शांति मिल पायेगी क्या इन बीहड़ो में ?
तुम जहां पर आज आ कर चाहते हो ?
सींचते ही क्यों हो इन जंगलों को ?
सूखने दो अब इन दुर्गम वनों को..
1984  Photo
 

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