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बुधवार, 17 जुलाई 2013

नीलाकाश


सघन तिमिर मय नीलाकाश 
रात्रि की शान्ति 
शान्ति में मिट  जाती विश्रांति 
उमड़ने दो कोई स्वर आज ,
गूँजने दो कोई गुंजार ..
शांत क्यूँ रहता है नभ आज ?
मूक तारावलियां स्नात 
घुल चुका  दिन भर का अवसाद 
कहीं जाकर अम्बर के बीच 
खुल गया एक अकिंचन पाट !
अपरिचित यायावर के हेतु ,
रात्रि जब इतनी मोहक हो ,
'सबेरा फीका लगता है ..
रात्रि की पर, हर एक सिलवट 
सबेरा ही तो धोता  है !
1981
Photo: Good night world ♥ Golden dreams

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