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गुरुवार, 25 जुलाई 2013

क्यूँ पीछे देखूँ ?


क्यूँ मैं पीछे मुढ़ कर देखूँ ,
दलदल भरे वनों की ओर ?
दीप सामने जलता मेरा ,
चलूँ न क्यूँ अब उसकी ओर ?
अब ज्या रात छाये या दिन हो ,
मेरे पथ पर दिव्य किरण है
छाई हुयी मेरे हर ओर ..
क्यूँ मैं कीचड़ में अब उतरूँ ?
कमल आ रहा मेरी ओर ..
क्या उस मलिन रात्रि में खोजूँ
ज्योति प्रज्ज्वलित मेरी ओर ...
खोज रही थी जिसे आज तक
वही आ रहा मेरी ओर ..
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