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सोमवार, 22 जुलाई 2013

तुम बंदी हो अहंकार के तुम ईश्वर कैसे पाओगे ?तुमने कितनी कलियाँ नोची कितने फूल मसल कर रोंदे .
तुम भंवरे से भटक रहे हो तुम खुश्बू कैसे पाओगे ?दाने प्रलोभनों के फेंके मधुर शब्द के जाल बिछाए तन के आकर्षण में उलझे तुम मन को कैसे पाओगे ?मन का पंछी ढूंढा करता सत्यनिष्ठ विश्वास भरा मन तुम शैवाल नदी तट के हो एक लहर में बह जाओगे .
रास रचाने को तो तत्पर पर क्या प्रीती निभा पाओगे ?भोग- स्वार्थ के वशीभूत हो क्या खा योगी बन पाओगे ?
5-4-09

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