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बुधवार, 17 जुलाई 2013

मुखौटे

मुखौटे 
तुम्हारे आगे -पीछे ,दायें बाएं 
हर ओर कितने चेहरे 
कितने  मोहक दिखते, पर 
पीछे से घृणास्पद ..
मुखौटे इनके .
तुम्हारा इन से नाता 
कितना अनाम 
कितना रीता है -
तुम्हारा एकांत ..
कितना दुर्लभ है 
तुम्हे विश्राम ..
सफ़ेद चेहरों के मध्य 
तुम्हारा अस्तित्व 
कितना बोझिल !
अलग खड़े ये चेहरे 
 कितना बोझ बनाते हैं.. 
इनसे हट कर जब तुमने 
खामोशी को अपनाया तो 
एक शर्त उसने भी रख दी -
हर और हर दिशा में 
अटका मोह का धागा 
काटना होगा ..
अपने अस्तित्व के विस्तार हेतु 
तुम्हे पिघल जाना होगा ..
1981
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