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गुरुवार, 25 जुलाई 2013

प्यार

'कैसे कह देते हो तुम कि -
'तुम्हे प्यार करना नहीं आता '
कैसे  मानूँ कि मैं प्यार नहीं करती ?
काश कहते तुम कि -
'तुम्हे घृणा करना नहीं आता !'
तो यह सच होता शत प्रति शत ..
यह है, ऐसा ही है, कि सच है कि
घृणा से नहीं हुयी मेरी मित्रता
और ऐसे ही नहीं हुयी प्यार से शत्रुता
मैंने चाहा है पर केवल तुम्हे नहीं
हर एक को ,जो तुम में है ,मुझ में भी ,
बच्चों में भी ,वृद्धों में भी ,
अच्छों में भी,गंदों में भी ..
जो सच है शुभ है सुन्दरतम है
नियत है सतत है केवल वह
 मेरा एक मात्र प्रियतम है !
1983
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