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गुरुवार, 25 जुलाई 2013

जीवन क्रम


आज
अपनी परिपक्वता से
मुझे कोई शिकवा तो नहीं
फिर भी जैसे
कभी होता है एहसास
उम्र की तरुणाईयों से
वंचित होने का अकस्मात
कभी अपने में व्यस्त
 किसी क्षणिक सुख की ललक
करती है विवश, पीछे मुड़ने को
एक बार फिर उन
 नाज़ुक पलों को ढूंढने को
न जाने कैसे धीरे धीरे
 चल कर आ जाता
 कर्म कुटिल जीवन
कैसे चुपके से छुट जाता
 भोलापन
हर अशांति ने मेरे मन को ललकारा
जीवन को धिक्कारा
मन ने फिर
 निश्चय कर डाला
अपनी निश्छलता को त्यागा
ताना बाना सा बुन डाला
जीवन को पुनः बदल डाला..
1981 Photo

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