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गुरुवार, 25 जुलाई 2013

मुक्त पँछी


वह मुक्त कंठ पंछी
                  कुछ नाद कर रहा है
यूं चीर नीरवता
                 प्रतिवाद कर रहा है
क्यूँ बोलता अनर्गल ?
                क्या हास कर रहा है ?
या फिर, रुको, सुनूँ मैं ,
               क्या बात कर रहा है ..
ले स्वर उधार मेरे
              अभिव्यक्ति कर रहा है
खोये हुए ह्रदय की
                   हर बात को ग्रहण कर
वह इस अशब्द वाणी को
                      नाद दे रहा है ..

1983
रचना मेरा काम नही हैं, कवि या लेखक नाम नही हैं, हाँ, जब तुम मुझको पढ़ते हो एक काम कर पाती हूँ, भावो के दर्पण मे तुमको मैं तुमसे ही मिलवाती हूँ, कितनी इछाओ की नदिया कितने अरमानों के सागर बूंदों सी छोटी सी खुशिया और कुछ पीड़ाओं के गागर हां, जब तुम मुझको पढ़ते हो एक काम कर पाती हूँ, तेरी पीड़ा के भावों को मैं उर अपना दे जाती हूँ, शर्त यही हैं मेरे शब्दों को आकर पढ़ जाने की जो होती है एक वीर के बस सूली चढ़ जाने की जब जब आना, संग तुम्हारे हर भावो के सागर लाना स्वप्न अधूरे, तीव्र कामनाओं से पूरित गागर लाना और देखना दृष्टा होकर मैं कैसे और कब आती हूँ, शब्द तुम्हारे, हाथ तुम्हारे पर कविता मैं जन्माती हूँ ॥ <3 <3 <3

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