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गुरुवार, 25 जुलाई 2013

मुक्त आज कर दे


मुक्त आर कर दे तू मुझ को ,आँसू बन कर बहने दे ..
आज अलग     करने     दे        मुझ को झूठी परतें
मुस्कानों से दूर कहीं, केवल अब क्रंदन करने दे ..
मुक्त आज कर दे तू मुझ को आँसू बन कर बहने दें ..
आह ,आवरण हर ले मेरा ,निकट सत्य को रहने दे ..
क्यूँ फिर मिथ्या रूप दिखाऊँ ,मुझे अनावृत रहने दे .
छल- मल नहीं सहन अब ,निश्छल जीवन जीने दे
थी बहुत पिपासा विष की ही , अब अमृत के कण भी दे
मुक्त आज कर दे तू मुझ को आंसू बन के बहने दे
मुझ को आंसू बन बहने दे ,आंसू का सागर बनने दे
मुझ को फिर मंथन करने दे ,सागर से मोटी चुनने दे
मुक्त आर कर दे तू मुझ को आंसू बन कर बहने दे
.

1983
कुछ अनकही
      ...........7............
दिल के कागज पर
                आँसू की स्याही से,
अपने दर्दे दिल को लिखा| 
                यह सोचकर कि,
कोई दर्द को मेरे अपना सा समझेगा,
                और पढ़कर रो देगा|
लेकिन इंतिहाए बदक़िस्मती देखिए,
                पढ़कर दर्दे दिल को,
नही निकली उसके होंठों से 'आह'
                बस इतना ही कहा उसने 'वाह'!
सुनाएँ तो दिल का हाल किसे सुनाएँ,
                जिसे बताते हैं वोही मुस्कराता है
अजीब सी निगाहों से हमें देखता जाता है
                क्योंकि हमें जैसा लिखा पाता है
हक़ीकत में वैसा हम में कुछ नहीं पाता है
                लेकिन अंजान है वो इस बात से,
की हाथी के दाँत इंसान भी लगाता है|
                असल में होता है कुछ और है,
लेकिन दिखाया कुछ और ही जाता है||
               .............यशपाल भाटिया [3.1.1998]

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