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सोमवार, 15 जुलाई 2013

ऋतुचक्र


युग युग का असीम प्रक्रम 
विविधता के पथ का सतत  क्रम 
अनेकों कुसुमों की मधु गन्ध 
रश्मियों का चंचल नर्तन ..
विहग का उत्सुक मधु संगीत 
गा रहा मन विराग मय गीत ..
शरद में ग्रीष्म रात्रि का ध्यान 
ग्रीष्म में प्रिय मेघाच्छादन ..
शिशिर में बरसा व्याकुल मन 
बहा वर्षा ऋतू में नद  बन ..
फडफडा कर निज गीले पंख 
छोड़ निज नीड़ उड़ा नभ-चर 
आगई सुभग रश्मि तत्काल 
बुना सतरंगा सुर -धनु साज़ 
आगमन मलय पवन का ,
सूर्य का प्रचण्ड प्रकाश 
ले गया हर, हर सुख- साज़ 
मलय वातास ,रश्मि कण हास 
इन्द्र धनुषी मन का उल्लास !
1980

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