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मंगलवार, 16 जुलाई 2013

आकांशा -उपलब्धि -अनुभव


समझ कर तुमको शांत महान 
प्रेम पंकज का मुकुलित रूप 
स्वीकार तेरा शीतल गान 
समर्पण मौन किया निशि भूप !
किया तेरी आभा का  पान 
मान के तुझ को सत्य स्वरूप .
पाया अविरल ,अक्षुण मकरंद 
झरे जिसमे आनदं अनूप !
दिवस आया तो जाना भ्रान्ति ,
भूल थी व केवल अज्ञान 
दिवा न कहा सखी अनजान !
तुच्छ निकृष्ट कोटि का ज्ञान !
स्वप्न से जागे जैसे प्राण 
पाया मानस ने तेर्ज महान 
अहा, सूर्य देव, प्रणाम !
Photo
दिया है तुमने जीवन दान !
करो अब मन को शान्ति प्रदान .
किन्तु रवि थे इतने क्लांत 
किया चुप के सांझ प्रस्थान .
देख रवि निशिपति का संधान 
समेटा  आँचल, छिद्रित ,म्लान !
किया फिर उडगन का आह्वान !
1977

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