आज क्षितिज मुस्काया मेरा
आज उषा ने डाला डेरा
बादल छाये ,घिर -घिर आये ,
ढाँप क्षितिज शिशु रजनी सोयी
दामिनी कुपित होए शिशु रोये ,
अश्रु बहाए क्षितिज मेरा ..
बादल छटे ,लौट गयी रजनी ,
मिटा निराशा का अँधेरा ..
मुक्त हुआ ,मुस्काया अम्बर
आने को है सुखद सबेरा ..
आज क्षितिज मुस्काया मेरा ..
1985
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें