कल्पना लोक,ओस का कण ,
भविष्य जैसे उगता सूरज ,
ओस से ढकी मखमली घास ,
उनींदी आँखों का स्वप्नोल्लास !
सितारों भरी घनी यह रात,
मदिर भीगा जैसे आँचल ,
झुटपुटे का हल्का आभास ,
किसी का हो धूमिल सा गात,
बर्फ की चट्टानों सा श्वेत ,
अतीत का कड़वा शिलालेख,
कंटीली पग डंडी की राह
ज़िंदगी जी लेने की चाह!
क्षीर पर छाया रजत प्रवाह ,
रुपहले स्वप्नों का निर्वाह ,
अगम्य ,अम्लान सिन्धु सा
एक बिंदु का सजल उच्छाह !
शिथिल बालू सी उत्कंठा
चन्द्र -रवि आवेगों के साथ
उमड़ती -पड़ती हो दिन रात
ज्वार -भाटे सा हर उन्माद !
1980
ज्वार -भाटे सा हर उन्माद !
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