धूप -दीप
तुम दीपक से जलो और में बनूँ धूप मिट जाऊं
तुम प्रकाश भर दो जीवन में मैं सुगंध बन जाऊं .
धरती के उर में ज्वाला है और देह में सुरभि
जब प्रकाश अंतर्मन में हो जीवन होता सुरभित
जीवन चन्दन वन सा महका जब उर में तुम आये
उद्भित में तेरे ही उर से, जीवन राग सुनाये .
तुम मधुबन तो मैं सुगंध,तुम बनो गीत मैं गाऊं,
मैं रचना तेरी ही तुझ में रचूँ बहूँ मिट जाऊं .
तुम दीपक से जलो और में बनूँ धूप मिट जाऊं
तुम प्रकाश भर दो जीवन में मैं सुगंध बन जाऊं .
धरती के उर में ज्वाला है और देह में सुरभि
जब प्रकाश अंतर्मन में हो जीवन होता सुरभित
जीवन चन्दन वन सा महका जब उर में तुम आये
उद्भित में तेरे ही उर से, जीवन राग सुनाये .
तुम मधुबन तो मैं सुगंध,तुम बनो गीत मैं गाऊं,
मैं रचना तेरी ही तुझ में रचूँ बहूँ मिट जाऊं .
२४-२-०९
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