मुखौटे
तुम्हारे आगे -पीछे ,दायें बाएं
हर ओर कितने चेहरे
कितने मोहक दिखते, पर
पीछे से घृणास्पद ..
मुखौटे इनके .
तुम्हारा इन से नाता
कितना अनाम
कितना रीता है -
तुम्हारा एकांत ..
कितना दुर्लभ है
तुम्हे विश्राम ..
सफ़ेद चेहरों के मध्य
तुम्हारा अस्तित्व
कितना बोझिल !
अलग खड़े ये चेहरे
कितना बोझ बनाते हैं..
इनसे हट कर जब तुमने
खामोशी को अपनाया तो
एक शर्त उसने भी रख दी -
हर और हर दिशा में
अटका मोह का धागा
काटना होगा ..
अपने अस्तित्व के विस्तार हेतु
तुम्हे पिघल जाना होगा ..
1981
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