मन के अन्तर्तम से उद्भित ,
आज हुआ रस मय निर्झर ,
प्राणों का संताप धुल चला ,
ज्यूँ निकला निर्मल निर्झर !
याद नहीं कब दुःख मिला ,क्यों ?
याद नहीं कब रोष पला , क्यों ?
अब न तम -भव -भय ही याद ,
मल -छल ,पल -पल स्वतः धुल चला ,'
ज्यूँ निकला निर्मल निर्झर ..
क्यूँ छाया था अन्धकार ?क्यों
भटके इतने मेरे प्राण ?क्यों
अनजानी प्यास जगी थी ?क्यों
था दुखों का न पार ?एक पल में
सब त्रास मिट गया ,
ज्यूँ निकला निर्मल निर्झर ..
मन के अन्तर्तम से उद्भित ,
आज हुआ रस मय निर्झर ,
प्राणों का संताप धुल चला ,
ज्यूँ निकला निर्मल निर्झर !
1985
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