फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

दुनियादारी


मुझे मालुम है -ज़रूरत होगी
तो सर पे चढ़ा लोगे
और काम होते ही
 मुझे रौंद डालगे
आज दो कदम,
मेरे साथ साथ चल कर तुम
एहसान जताओगे
कल आढ़े आकर तुम,
दस कदम मुझे
पीछे ही धकेल जाओगे
मैं ?
मर भी जाऊँगी ,
मिट तो न पाउंगी ,
ऊँची चट्टानों पे ,चढ़ती ही जाऊँगी
तपती राहों पे ,बढ़ती ही जाउंगी ..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें