दीप जलाती
महाप्रणय का
पंथ निहारूं महादेव का ..
वह श्यामल,
घातक अँधियारा
मेरे उर का
दीपशिखा सा
यहाँ प्रज्ज्वलित
प्रेम देव का ..
विघ्न वरुण
मत कम्पित कर
तू प्रेम शिखा को ,
अविचल ,
ज्योतिर्मय अनंत
कर दीपशिखा को ..
तृण - तृण
आलोकित कर दे
तू ह्रदय -नीड़ का ,
कण -कण
स्वर्णिम बन चमके,
मेरे मंदिर का !
दीपशिखा सा
यहाँ प्रज्ज्वलित
प्रेम देव का ..!
आह ,प्रतीक्षा
महिम तुम्हारी !
दुर्गम पथ ,
विचलन, लाचारी !
शाश्वत ,दुर्लभ प्रेम ईश का
चिर नवीन शुभ, स्वप्न प्रणय का ..
दीप जलाती महा प्रणय का ..!
1983
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