मैं पथिक हूँ दिव्य पथ की
क्या मुझे ठग पाओगे तुम ?
मैं प्रिया हूँ उस महिम की ,
क्या मुझे छू पाओगे तुम ?
शान्ति अनंत अनंत ...
अविराम निर्झर निर्गमित है
प्रेम का ..विश्राम का ..
मैं उसी रस की हूँ रसिका ..
क्या मुझे दे पाओगे तुम ?
प्रेम है विश्राम है
आश्रय है ,न संताप है ..
तृप्ति ..संतृप्ति ..सदा दे
मैं उसी जल की हूँ तृषिता .
क्या तृषा हर पाओगे तुम ?
मैं पथिक हूँ दिव्य पथ की
क्या मुझे ठग पाओगे तुम ?
1982
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
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