ज़िंदगी
ख़त्म नहीं होती ,
कभी भी नहीं ,कहीं भी नहीं
मौतें कितनी भी हों ,
कैसी भी हों -मानसिक ,भावनात्मक
या दैहिक .
ज़िंदगी को ख़त्म नहीं करती
बस शक्ल भर बदल देती हैं
ज़िंदगी की
मौत छोटी है ,बहुत छोटी
जब की शाश्वत है ,सच है
सिर्फ ज़िंदगी !
1983
ख़त्म नहीं होती ,
कभी भी नहीं ,कहीं भी नहीं
मौतें कितनी भी हों ,
कैसी भी हों -मानसिक ,भावनात्मक
या दैहिक .
ज़िंदगी को ख़त्म नहीं करती
बस शक्ल भर बदल देती हैं
ज़िंदगी की
मौत छोटी है ,बहुत छोटी
जब की शाश्वत है ,सच है
सिर्फ ज़िंदगी !
1983
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