हर चेहरा खिलता फूल बने ,
हर जीवन शाश्वत गीत बने ,
हर प्राणी खुद को पहचाने
हर मानव अपना मीत बने !
खुद को इतना मत बहने दो ,
खुद को न दुर्बल होने दो ,
तुम क्यों इतने दयनीय बनो ?
तुम शक्ति मुखरित होने दो !
कितना खुद को तड़पाते हो ,
खुद को ही छलते जाते हो ..
मत अपना ही उपहास करो
जीवन का न दुरपयोग करो !
वह मूर्ख ही जो छलता है ,
दुर्बल है वह जो जलता है ,
कायर ही निंदा करता है
उपहास करें ,वे रोगी हैं !
दुर्वृत्ति के न दास बनो,
दुर्बुद्धि वश न नाच करो ,
सोचो समझो खोजो खुशियाँ
जीवन अपना आबाद करो !
मुझे चाहिए शाश्वत जीवन ,
हर जीवन को प्यार मिले
हर प्राणी खुद को पहचाने ,
हर मानव अपना मीत बने !
1983
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