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गुरुवार, 25 जुलाई 2013

किस से प्यास बुझाऊँ


तुझ सा मीत कहाँ से लाऊं ?
तुझ सी प्रीत कहाँ से पाऊं ?
तुझ से प्रेम तोड़ कर अच्युत ,
किस से प्रेम बढाऊं ?
प्रतिक्षण अंतर्मन से उद्भव जिसका,
दे जो महका तन -मन ,नव प्रभात
दे अंतर्मन को ,उस स्वर्णिम'दिनकर
से बढ़ कर, किस में ज्योति पाऊँ ?
बंजर सूखा जीवन -प्राङ्गण ,
सतत तृषित पत्थराई अवनि ,
आस त्याग श्यामल नीरद की ,
रस से सिक्त करे जो अवनि ,
किस से प्यास बुझाऊँ ?

यूँ तो वो सबके हैं 
मगर केवल मेरे हैं
तभी कहता है इंसान 
जब पूरा उसमे डूब जाता है जैसे गोपियाँ ……………


तुम केवल मेरे हो ,
आँखों के कोटर मे 
बंद कर लूंगी श्याम 
पलकों के किवाड लगा दूंगी 
ना खुद कुछ देखूंगी 
ना तोहे देखन दूंगी 
ये मेरी प्रीत निराली है 
मैने भी तुझे बेडियाँ डाली हैं 
जैसे तूने मुझ पर अपना रंग डाला है 
अपनी मोहक छवि मे बांधा है 
अब ना कोई सूरत दिखती है 
सिर्फ़ तेरी मूरत दिखती है 
मेरी ये दशा जब तुमने बनायी है 
तो अब इसमे तुम्हें भी बंधना होगा 
सिर्फ़ मेरा ही बनना होगा ………सिर्फ़ मेरा ही बनना होगा 
अब ना चलेगा कोई बहाना 
ना कोई रुकमन ना कोई बाधा 
मोहे तो भाये श्याम सारा सारा 
मै ना बांटूँ श्याम आधा आधा

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