चुपचाप पीते चलो
जो भी मिल जाए
अपने प्याले में !
कुछ भी ढुलका लो
चाहे जो भी हो
कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ता !
अभी तो बस, पीते चलो और
पीते चलो,प्याला खाली हो
तो भो होठों के करीब
खींचे रहो खाली प्याले को !
न हो आज ,कुछ तो मिला
प्याला भरने को ,
ज़हर ही सही ,
बुरा क्या है ?
प्याला भरा तो है न !
तो फिर चुप क्यों हो ?
लो और पीते चलो
यूं ही पीते चलो !
1983
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