समय से यूं हूँ परे
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गुरुवार, 25 जुलाई 2013
भ्रमजाल
तोड़ दे ,प्रिय सारा भ्रम-जाल,
भेद भव -रजनी का तम-जाल
जगादे विश्व प्रेम की ज्योति ,
मिटा दे जीवन से व्यामोह!
मलय दे आहत प्राणों को ,
तरल कर दे जन मानस को,
मिटा दे क्लेश ,द्वेष, संग्राम
बहा निर्मल निर्झर अविराम !
1984
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