मुक्त आर कर दे तू मुझ को ,आँसू बन कर बहने दे ..
आज अलग करने दे मुझ को झूठी परतें
मुस्कानों से दूर कहीं, केवल अब क्रंदन करने दे ..
मुक्त आज कर दे तू मुझ को आँसू बन कर बहने दें ..
आह ,आवरण हर ले मेरा ,निकट सत्य को रहने दे ..
क्यूँ फिर मिथ्या रूप दिखाऊँ ,मुझे अनावृत रहने दे .
छल- मल नहीं सहन अब ,निश्छल जीवन जीने दे
थी बहुत पिपासा विष की ही , अब अमृत के कण भी दे
मुक्त आज कर दे तू मुझ को आंसू बन के बहने दे
मुझ को आंसू बन बहने दे ,आंसू का सागर बनने दे
मुझ को फिर मंथन करने दे ,सागर से मोटी चुनने दे
मुक्त आर कर दे तू मुझ को आंसू बन कर बहने दे
.
1983
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