जब भी तुमको पुकारूँ गीत मेरे !
मुस्कुराते हुए चले आना ..
देखो कितनी हवाएं तपती हैं ,
बर्फ जमता है, आग लगती है ,
किस कदर ये ज़मीन जलती है
ज़िंदगी गलती है, पिघलती है
राख के ढेर कितने उड़ते हैं.. .
कितनी चिंगारियाँ दहकती हैं ,
मेरी दुनिया में कुछ सुलगता है
कोई तूफ़ान सा उमड़ता है
मेरा हर रोम रोम दुखता है
तुम से सिर्फ इतना अर्ज़ करता है
यूँ ही तुम आके काले बादल सा
मेरी इस आग को बुझा जाना
जब भी तुमको पुकारूँ गीत मेरे
मुस्कुराते हुए चले आना ....
1982
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