समय से यूं हूँ परे
फ़ॉलोअर
गुरुवार, 25 जुलाई 2013
दीप जला दे न !
अँधियारा छाया है मन में ,
आकर दीप जला दे न !
गहन कालिमा व्याप्त हुयी है ,
तू ही ज्योति जगा दे न !
दुविधा -आशंका -अस्थिरता ,
विस्मृति -क्रंदन -अधीरता ,
आहात है मन, आहत जीवन,
मुझ में समा ,करुणा कर न !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें