मन मधुकर न धोखा खाना,
मान कमलिनी का रे कहना
चाहे कितना तू मंडराना ,
चाहे तू जितना इठलाना
दिन भर नूतन खेल रचाना,
पूर्व समय तू भूल न जाना
संध्या का अनुमान करा देंगे
तुझ को अनजाने मीत
नहीं मिलेंगी मुकुलित कलियाँ,
नहीं रहेंगे मोहक गीत
सुन -सुन तेरा एक ठिकाना,
पूर्व रात्रि तू भूल न जाना
निशा आगमन के पहले तू
कमल कोष में आजाना
मन मधुकर न धोखा खाना
सही ठिकाना भूल न जाना
1981
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