वह मुक्त कंठ पंछी
कुछ नाद कर रहा है
यूं चीर नीरवता
प्रतिवाद कर रहा है
क्यूँ बोलता अनर्गल ?
क्या हास कर रहा है ?
या फिर, रुको, सुनूँ मैं ,
क्या बात कर रहा है ..
ले स्वर उधार मेरे
अभिव्यक्ति कर रहा है
खोये हुए ह्रदय की
हर बात को ग्रहण कर
वह इस अशब्द वाणी को
नाद दे रहा है ..
1983
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