कैसे समझाऊं ?
कि -मुस्कुराना ,
खुश होना नहीं होता .
कि -आंसू बहाना ,
ग़मगीन होना नहीं होता!.
कम से कम
मेरे साथ तो
ऐसा ही है ..
कि जब मैं
छिल जाती हूँ
अन्दर से ,
उधड़ने लगती हूँ ,
तो बस ,मुस्कराहट की
रफ़ू शुरू कर देती हूँ ..!
और इस से भी काम न चले मेरा
तो एक पैबंद ,बड़ा सा ,
लगाने लगती हूँ
अपनी हंसी का !
1983
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