देखो ,देखो न ..
रात , कितनी गहरा रही है
काली और गाढ़ी होती जा रही है
कोई तारा भी, नज़र आता, काश !
ये काला -बड़ा,फैला, पेड़
इतना भी दिखने नहीं देता !
मैं हूँ तो कहीं,पर
फिर भी नहीं हूँ !
रोती तो नहीं, पर
हंसती भी नहीं हूँ !
कहती तो नहीं कुछ ,पर
चुप भी नहीं हूँ !
अजीब हालत है मेरी ,
लेकिन तू ?
तू है तो शायद
यहीं -कहीं
या शायद बिलकुल भी नहीं .
फिर भी
तू कहीं तो है न ?
शायद वहां ,जहाँ मैं
हूँ तो लेकिन
फिर भी नहीं हूँ .
जिस तरह की
तू है यहाँ !
हर तरफ ,हर जगह
मेरे अन्दर -सोया ज्वार ,
मेरे प्राणों के साथ- साथ,
मेरी धड़कन की बन के ताल ,
और भी
जाने क्या क्या
शायद ,सब कुछ
बस तू ही है !
मैं तो नहीं ..
तू ही है न
मैं तो नहीं .. !
1983
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