न जाने कैसे हैं मन के आंसू ,कि दिखने लगता जहान सूना
ये आग कैसी जो राख करदे आदमी का हर एक टुकड़ा
मगर जिसे न देख पायें ज़माने भर की हज़ार आँखें
ये कैसा तूफ़ान कैसी आँधी ,की उडाता जाए मन का पंछी
हो कितना घायल ,चाहे अँधा ,न कोई आके सहलाये
ये एक सागर हो बर्फ़ीला या फिर हज़ारों लगें थपेड़े
की चाहे डूबो या खालो गश भी ,कोई न तुमको उबार पाए
तू मुस्कुरादे तो खुश है दुनिया भले ही दिल से हज़ार रोये
तू साथ बह ले तो साथी तेरे भले ही मन तेरा टूटे ,खोये
आँसू के अस्तित्व पर बढ़िया प्रस्तुति।
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