हर बार लगता है कि -
मैं ही गलत थी
जब मैंने खुद को समझदार
मान लिया था .
वे जब कहते हैं -
'तुम नासमझ हो !'
आश्चर्य होता है मुझे .
लेकिन यह सच है
मैंने भी माना है
कि अब तक सब कुछ
समझ कर भी
मैं नासमझ हूँ क्योंकि -
कहाँ सीखा है मैंने ?
झूठे -मूठे वायदे करना,
वक्त पड़े तो टरकाना
वक्त पड़े तो टरकाना
पहले आना ,प्यार जताना ,
और फिर डंक चुभो देना .
इतना कुछ बाक़ी है
अब भी मुझे सीखना ..
फिर भी मालूम है
मेरी बंदिश है -धोखा खाना
मेरी आदत है- बदला चाह कर भी
न ले पाना ..
हर बार अपने लिए
इक नया और बेहतर घाव बनाना
क्योंकि मैं अब भी
नासमझ हूँ न !
1983
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