समय से यूं हूँ परे
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शुक्रवार, 19 जुलाई 2013
लौ
एक लौ है
जलाली,मैंने
अपने अन्दर,कि
जो फूल मुझे मिलते हैं
तारीफों के ,
पास आते ही मेरे
राख में ढल जाते हैं
पर जो ,कांटे हैं मिले
तानों के और कंकड़
अपमानों के ;
मेरे पास आके
पिघल जाते हैं
और मुझ में ही
समां जाते हैं!
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