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गुरुवार, 25 जुलाई 2013

व्याकुल अंतस


फिर से व्याकुल अंतस मेरा,
फिर से प्राण अधीर हुए हैं.
फिर से तुझ पे रोष उमड़ता,
फिर से दृग,मयनीर हुए हैं,
सुख का तो आभास मात्र है ,
दुःख के श्यामल मेरु खड़े हैं,
संतुष्टि का स्वप्न शेष है ,
अतृप्ति मय मार्ग पड़े हैं .
फिर से रिक्त हो चला है मन,
फिर सब बंधन चटक गए हैं .
पाने की आशा धूमिल है ,
खोने के अनुभव कितने हैं,
स्वप्नमयी सृष्टि का छल है,
छल -जल से घट भरे हुए हैं,
फिर दुःख सिक्त हो चला जीवन ,
फिर आशा तृण बिखर गए हैं,
फिर से व्याकुल अंतस मेरा,
फिर से प्राण अधीर हुए हैं !
1984
तुम्हारी याद कब जुदा हुई मुझ से ..!
ना कोई ऐसा पल गुजरा जो तुम हुए हो जुदा हमसे ..!
जब तुम याद ना आये हमे कोई ऐसी सुबह ना खिली  ..! 
तुम को खुद से दूर कर पाए ऐसी कोई धूप ना मिली  ..!
संग तेरी याद के कोई ली'चाय' हो ऐसी शाम ना हुई ..!
रात में यादों संग चांदनी में 'ना'नहाये कोई रात ना हुई ..!
यादों के काफिले का 'कफ़न' ना ढक ले मेरी यादों 'चमन' ..!
तुझको मेरी मोहब्बत की कसम अब तो आजाओ सनम .."ओ मेरे सनम"..!अनु

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