आज,
फिर से शान्ति है
छाई हुयी
मेरे जगत में ..
छिप विहग के पंख में
अब उड़ चले
आक्रोश के तृ ण ,
भावनायें सुप्त हैं
उद्दाम लहरें मिट चुकी हैं
धीर सागर नीर में ..
प्राण हैं निः शेष केवल
मैं अनन्य भाव हूँ .
उज्ज्वला हूँ ..
दीपिका हूँ ..
गीतिका हूँ ..
काव्य हूँ ...
शांति का विस्तार है
और प्रेम मय
साम्राज्य है
शासिका निर्वेद हूँ ..
सत्ता हूँ मैं
साम्राज्य हूँ ..
द्वैत से अब हूँ परे
एक निष्ठ प्राण हूँ ..
1983
फिर से शान्ति है
छाई हुयी
मेरे जगत में ..
छिप विहग के पंख में
अब उड़ चले
आक्रोश के तृ ण ,
भावनायें सुप्त हैं
उद्दाम लहरें मिट चुकी हैं
धीर सागर नीर में ..
प्राण हैं निः शेष केवल
मैं अनन्य भाव हूँ .
उज्ज्वला हूँ ..
दीपिका हूँ ..
गीतिका हूँ ..
काव्य हूँ ...
शांति का विस्तार है
और प्रेम मय
साम्राज्य है
शासिका निर्वेद हूँ ..
सत्ता हूँ मैं
साम्राज्य हूँ ..
द्वैत से अब हूँ परे
एक निष्ठ प्राण हूँ ..
1983
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